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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


स्त्रियों को भी अपनी पाहुनियो का आदर-सत्कार करने में कमी न करनी चाहिए और जहाँ तक हो सभी स्त्रियों के साथ एकसा बर्ताव करना आवश्यक है। विधवाओ ओर वृद्धाओं के प्रति विशेष आदर-भाव व्यक्त करने की आवश्यकता है। यथा-सम्भव चाप-लूसी करने का कोई अवसर न लाया जाय। बात बात में हँसी करने अथवा अपशब्दों के प्रयोग की प्रवृत्ति को भी रोकने की आवश्यकता है। स्त्रियों को ऐसी स्त्रियो के साथ व्यवहार न बढ़ाना चाहिए जिनकी सगति को चार जने दुषित समझते हैं।

आदर-सत्कार में प्रथमता का निर्णय बहुधा पात्र की आयु के अनुसार किया जाय जिसमे किसी को अप्रसन्न होने अथवा आक्षेप करने का अवसर न मिले।

जाति-सम्बन्धी उत्सवों में परस्पर व्यवहार पालने की बड़ी अवश्यकता है । इन अवसरों पर हम केवल जाति वालो ही के यहाँ नहीं, किन्तु अन्य जाति वाले मित्रों के यहाँ भी आना जाना चाहिए। जिन उत्सवो में सार्वजनिक सभा करने की प्रथा है उनमे हमे उस सभा में सम्मिलित होना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो एक दूसरे के यहाँ जाकर भेट-व्यवहार करना चाहिए । खेद है कि हिन्दुओं में और विशेषकर हिन्दुस्थानी लोगो में जाति-सम्बन्धी अथवा सामाजिक उत्सव भी बहुधा घरू उत्सवो का रूप धारण करते हैं जिससे रामनवमी सरीखे महत्व पूर्ण और धार्मिक उत्सव में भी न लोग एक-दूसरे से मिलते हैं और न कोई सार्वजनिक सभा ही होती है। इस उदासीनता का यह परिणाम होता है कि हिन्दुओं के अनेक महत्व पूर्ण सामाजिक उत्सव जाने भी नहीं जाते और जाति में एकता तथा दूसरे उच्च भाव उत्पन्न करने का साधन सहज ही हाथ से निकल जाता है । स्थानाभाव से हम यहाँ अन्यान्य जातीय उत्सवो के विषय में कुछ न कहकर केवल