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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


महीनो पहिने रहते हैं वे शिष्टाचार को बढ़ने ही नहीं देते । विशेष अवसरों पर विशेष प्रकार की पोशाक पहिनना शिष्ट समझा जाता है। यदि इस समय लोग प्रतिदिन की पोशाक पहिनते है तो दूसरो का इस बात से असंतोष होता है। विशेष आदरणीय स्थान में अथवा विशेष अादरणीय पुरुष के पास साधारण परिधान में जाना उस स्थान और पुरुष का निरादर करना है।

पोशाक में असंगति न होनी चाहिए । धोती पहिनकर टोप लगाना अथवा कोट-पतलून पर अलवान आढना असगत है । इसी प्रकार अँगरखे के साथ पतलून शोभा नहीं देती। साहबी पोशाक के साथ दिल्ली के पतले जूते भी अच्छे नही लगते । कोई-कोई लोग दोनों पक्षो का समर्थन करते हुए धोती के ऊपर पतलून पहनते हैं और पीछे एक पोटली भी बाँधे फिरते हैं। यह रीति अशिष्ट समझी जाती है। मोजो के बिना पतनून के साथ जूते भी शोभा नहीं देते। इसी भांति अन्यान्य अनमिल पाहनावे भी शिष्टाचार के विरुद्ध समझे जाते हैं । काई कोई साहब पोशाक के प्रेमी सज्जन दिन ही का नाइट-केप (रात की टोपी) लगाकर असंगति का परिचय देते हैं।

कपडो के साथ साथ केश कलाप का प्रश्न भी विचार के योग्य है। आजकल प्राय सर्वत्र अंगरेजो के अनुकरण पर छोटे बाल रखने की प्रथा प्रचलित है । ऐसी अवस्था में पुराने समय के नमूने के बडे-बड़े बाल रखना भदेस समझा जाता है। हाँ, जो लोग धर्म की प्रेरणा से डाढ़ी, मूंछ और सिर के बाल कटाना अनुचित समझते हैं उनके केश-कलाप को कोई नाम नहीं रखता । जो ही, बालो के रखने में सगति अवश्य होनी चाहिए । ऐसा न हो कि सिर पर एक भी बाल न रहे और डाढ़ी लम्बी फहरावे अथवा सामने घोसले के समान बड़े-बड़े बाल रखकर सिर के शेष भाग