में बारीक बाल रखे जावें। पिछले प्रकार के बालो का प्रचार नीच जातियों में देखा जाता है। लोग मुंँछो के साथ भी बहुधा अन्याय
करते हैं। अंँगरेजी बाल के अनुकरण पर कई लोग आधी-आधी
मूँछे रख लेते हैं । इस फेशन से केवल जातीय चिह्न ही नष्ट नहीं
होता, किन्तु चेहरे के रूप में कुरूपता भी आ जाती है। कई एक
सज्जन मूँछो का ऊपर-नीचे से बनाकर उन्हें एक बिन्दु में मिलने-
वाली दो पतली रेखाओ का रूप दे देते हैं । यह भी देखने में
अच्छा नहीं लगता। जिन लोगो में मूँछ मुड़वाने की चाल नहीं है
वे भी कभी-कभी उन्हें बोझ समझकर अथवा स्वयं विद्वान समझे
जाने की दृष्टि से उन्हें मुड़वा डालते हैं। ऐसा करना ठीक नहीं
समझा जाता । मूँछें पुरुषत्व का चिह्न है, इसलिये इन्हे सरलता से निकाल देना मानो अपने पुरुषत्व का रूप नष्ट करना है। यह बात सत्यासियो के लिए लागू नहीं हो सकती जो धर्मानुसार भोंहा को छोड़कर सिर और मुख पर बाल नहीं रख सकते । सिर के कुछ भाग में बाल रखना और अन्य भाग में बिलकुल बनवा देना भी अशिष्टता का चिह्न है । हिंदुओं को फैशन के फेर में पड़कर अपनी चोटी न कटा देना चाहिए, क्योकि यही एक ऐसा चिह्न है जिससे हिन्दू को पहिचान सरलता पूर्वक हो सकती है। जातीय झगड़ो में शिखा-नष्ट लोगों को बड़ी दुर्दशा होती है ओर वे अपनी समाज से भी तिरस्कृत किये जाते हैं।
सारांश यह है कि परिधान और केश-कलाप में अनुचित नवीनता अथवा विचित्रता का समावेश न किया जाये।
(८) प्रवास में
प्रवास मनुष्य की शिक्षा का एक अंग है, इसलिये उसे देश-
देशान्तरो में अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रवास अवश्य करना
चाहिए, चाहे वह शिक्षित हो चाहे अशिक्षित । ऐसी सभ्य समाज
हि० शि—४