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चौथा अध्याय


उसके साथ रहना चाहिए । यदि कोई मनुष्य किसी विशेष व्यक्ति के भरोसे अथवा आसरे, प्रवास में आया हो तो इसे सब अवस्थाओं में उसकी सहायता करना चाहिए।

सवारियों में बेठने के समय शिष्टाचार को बड़ी आवश्यकता है। लोगो को इस प्रकार न बेठना चाहिए जिसमे दूसरो को बैठने के लिए अथवा समान रखने के स्थान न मिले । स्वार्थ के वश होकर लोग बहुधा दूसरो को बैठने के लिए स्थान ही नहीं देते और रेल में तो बहुधा उन्हें अपने डब्बे में ही नहीं आने देते । इस प्रकार की उद्दडताओ से कभी-कभी यात्रियों में परस्पर मार पीट तक हो जाती है जो असभ्यता का एक बड़ा भारी चिह्न है। रेन गाड़ियों के अवबंध के कारण लोगो को कभी-कभी एक दूसरे की परवाह न कर पशुओ की तरह भागना पड़ता है और अपने ही सुभीते की ओर पूरा ध्यान देने की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी अवस्था में भी यदि लोग स्वार्थ की मात्रा कम करके धीरज और उदारता से काम लें तो गाड़ियों में सब को उचित स्थान मिल सकता है और लोग व्यर्थ की धक्का-मुक्की से बच सकते हैं । यहाँ हम रेल के कर्मचारियों से अनुरोध करते हैं कि वे अधिक सभ्यता और शिष्टाचार से यात्रियों के साथ वर्ताव करें जिससे इन्हें गँवारी करने का कोई अवसर ही न मिले । यदि किसी धनी अथवा प्रतिष्ठित आदमी के पास कोई साधारण अथवा गरीब यात्री आकर बेठ जावे तो उसे अपने अहभाव में इस मनुष्य का तिरस्कार न करना चाहिए । हाँ, यदि कोई दुष्ट मनुष्य गॅवारी का व्यवहार करे तो उसे उसकी दुष्टता का बदला अवश्य दिया जाये।

यदि प्रवास में स्त्रियों का साथ हो तो पुरुषो का कर्त्तव्य है कि ये उनके सुभीते का पूरा ध्यान रखें। स्त्रियों के आवश्यक कार्य समाप्त हो जाने पर ही पुरुष अपने कामो को निबटाने का उद्योग