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पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/६७

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चौथा अध्याय


के अनुसार तन मन धन मे उसकी सहायता करे। इस उपाय से अकाल, रोग, विप्लव, राजदण्ड आदि के समय किसी भी जाति के लोग रक्षा पा सकते हैं और सजातियों का पुण्य का भागी बना सकते हैं।

यद्यपि जातीय पक्षपात कुछ सीमा तक उचित ओर शिष्ट समझा जाता है तथापि सीमा के बाहर इसका प्रचार त्याज्य है। कोई कोई लोग यहाँ तक जातीय पक्षपात करते हैं, कि यदि उन्हें कोई पद या अधिकार प्राप्त हो जाता है तो वे अपने ही जाति वालो को नौकरियां दिलाते हैं । इस पक्षपात से केवल अनीति ही उत्पन्न नहीं होती, किन्तु दूसरे लोगो का हक मारा जाता है और बहुधा योग्य व्यक्तियों के बदले अयोग्य लोगो का नियुक्ति हो जाती है। इस प्रकार के पक्षपात के कारण कई लोगो को हानि उठानी पड़ी है।

जाति-वाला और सम्बन्धयों के यहांँ जाने के समय छोटे लड़को के लिए पर मिठाई, खिलाने अथवा कपड़े आदि ले जाना आवश्यक है। पूज्य नातेदारो का रुपये की भेंट करना चाहिए । जहाँ बड़े लोगो के चरण छूने की चाल है वहांँ इस प्रथा का पालन किया जाय । यदि नातेदार के यहाँ उत्सव के अवसर पर जाने में कोई अड़चन आ जाये तो उसके यहाँ किसी उपाय से व्यवहार का रुपया और कपड़ा अवश्य भिजवा दिया जाय । ऋतु के अनुसार, सम्बधियों के यहाँ फल, मेवा प्रादि भेजना भी शिष्टराचार का लक्षण है । यदि धनाढ्य लोग अपने निर्धन जाति- वालो ओर सम्बन्धयों की यात्रा का विवाह और बालकों का यज्ञापवीत करा दिया करें अथवा इनकी शिक्षा में उचित सहायता दिया करें तो ये काम केवल शिष्टाचार ही के नहीं, किन्तु परम पुण्य के प्रकाशक होगे।