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पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/७१

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पांचवाँ अध्याय

व्यक्तिगत शिष्टाचार

(१) सम्भाषण में

मनुष्य की विद्या, बुद्धि और स्वभाव का पता उसकी बात- चीत से लग जाता है, इसलिये उसे अपने विचार प्रकट करने के लिए बात-चीत में बड़ी सावधानी रखना चाहिये । सम्भाषण में सावधानी की आवश्यकता इसलिये भी है कि बहुमा बात ही बात में कर्प बढ़ आती है । यथार्थ में मनुष्य की बात-चीत ही उसके कार्यों की सफलता अथवा असफलता का कारण होती है । किसी कवि ने कहा है, “कहें कृपाराम सय सीखियो निकाम, एक बोलियो न सीखो, सब सीखो गयो धूर में"। जिसकी बात-चीत में सभ्यता व शिष्टाचार का अभाव रहता है उससे लोग बात-चीत करना नही चाहते।

सम्भाषण करते समय श्रोता की मर्यादा (हैसियत) के अनुरूप ‘तुम', ‘आप' अथवा ‘श्रीमान' का उपयोग करना चाहिये । इनमे से आप शब्द इतना व्यापक है कि यह ‘तुम' और ‘श्रीमान' का भी स्थान ग्रहण कर सकता है । ‘तुम' का उपयोग अत्यन्त साधारण स्थिति के लोगो के लिए, और ‘श्रीमान' का उपयोग अयन्त प्रतिष्ठित महानुभावो के लिए किया जाये । बहुत ही छोटे लड़को को छोड़कर और किसी के लिए ‘तू' का उपयोग करना उचित नहीं। किसी के प्रश्न का उत्तर देने में ‘हाँ' या ‘नहीं' के लिए केवल सिर हिलाना असभ्यता है। उसके लिए ‘जी हां' या ‘जी नहीं कहने की बड़ी आवश्यकता है। बात-चीत इस प्रकार रुक-रुककर