सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६७
पाँचवाँ अध्याय


से उत्तम उपाय यही है कि इनके उर्दू शब्दो का उच्चारण हिन्दी के प्रचलित अक्षरों से किया जाये। हिन्दी लिपि में उर्दू अक्षरों के प्रतिनिधि हिन्दी अक्षरों के नीचे बिन्दी लगाने को जो अनिष्ट प्रथा है उससे उच्चारण-सम्बन्धी ये सब भूलें होती हैं। बिना किसी विशेष कारण के मातृ भाषा को छोड़ आये भाषा में बात-चीत करना शिष्टाचार के विरुद्ध है।

मातृ-भाषा में बात-चीत करते समय बीच-बीच में अँगरेजी शब्द बोलने की जेा दूषित प्रथा है उसका याग सवथा उचित है। इसी प्रकार मातृ भाषा के ऐसे प्रान्तीय शब्द भी काम में न लाये जावें जो या तो अत्यन्त भदेस हो या जिन्हें दूसरे प्रान्तवाले न समझ सके।

( २ ) पत्र-व्यवहार में

पत्र-व्यवहार भी एक प्रकार का बात-चीत है, परन्तु वह इस- की अपेक्षा अधिक स्थायी होता है । बात-चीत में यदि कोई भूल हो जावे तो यह क्षमा के योग्य है, क्योंकि उसमें मनुष्य को सोच विचार के लिए पूरा समय नहीं मिलता, परन्तु यदि पत्र लिखने में किसी कारण से जल्दी न की जावे तो लेखक को सोच सोचकर बातें लिखने का अधिक सुभीता रहता है । ऐसी अवस्था में यदि पत्र में कोई अनुचित बात लिखी जावे तो उससे बात-चीत की अपेक्षा अधिक हानि होती है । सुनी हुई बात को मनुष्य कुछ समय के पश्चात् भूल सकता है, परन्तु लिखी हुई बात को प्रभाव पत्र देखने पर बार-बार पड़ सकता है। बात-चीत की अपेक्षा पत्र व्यवहार में आदर-सूचक शब्दो का प्रयोग अधिकता से किया जाता है।

पत्र-व्यवहार के सम्बन्ध में कई बातें ऐसी हैं जिनका सम्बन्ध बात-चीत से भी है। जिस प्रकार बात-चीत में ऐसी कोई बात नहीं कही जाती जिससे सुनने वाले के मन में खेद होवे अथवा उसको