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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


जहाँ तक हो, सहज और अलंकार-रहित हो । उसमे बड़े-बड़े शब्दों और वाक्यों का प्रयोग न किया जाय । बार-बार एक ही शब्द अथवा वाक्य को दुहराना अनुचित है। जहाँ तक हो पत्र में विदेशी शब्दों का उपयोग न किया जावे । निमंत्रण पत्रों की भाषा शुद्ध हिन्दी होना चाहिये । विद्वानो को जो पत्र लिखे जाते हैं उनमें थोडे बहुत कठिन शब्द आ सकते हैं, परन्तु साधारण लोगो को पत्र लिखने में कठिन, अप्रचलित और नये शब्दों का प्रयोग करना ठीक नहीं। शिक्षित लोगो की भाषा व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध होनी चाहिये । यदि ऐसा न होगा तो शिक्षित समाज में लेखक का उपहास होगा।

जब किसी के पत्र का उत्तर देना हो तब उस पत्र में लिखी हुई प्रत्येक बात का उचित उत्तर देना चाहिये । यदि कोई बात ऐसी हो जिसका उत्तर ‘हाँ’ या ‘नहीं' में देने से अनर्थ होने की सम्भावना है तो उसका उत्तर न दिया जावे, पर ऐसा अवसर कम आता है। निकट सम्बन्धयों और घनिष्ठ मित्रों के पत्रों में दोनो ओर के कुशल-समाचार की शुभ कामना, बड़ो को प्रणाम ओर छोटो को प्यार अवश्य लिखा जाये । साधारणत निजी पत्रों में और और बातों के साथ आव-हवा, रोग, फसल आदि का भी कभी कभी उल्लेख रहता है। यदि किसी पत्र का उत्तर पाने की विशेष आवश्यकता हो तो अपने पत्र में इस बात की प्रार्थना कर देना अनुचित न होगा।

छोटों बड़ी ओर बराबरी-वालो को पत्र लिखने के लिए जो उपयुक्त शब्द प्रचलित हैं उनको सावधानी से काम में लाना चाहिये । यदि पत्र में किसी दूसरे मनुष्य का उल्लेख हो तो जाति के अनुसार उसके पूर्व ‘पडित', ‘ठाकुर', ‘बाबू' अथवा ‘लाला' शब्द का प्रयोग करना आवश्यक है। यदि शीघ्र ही किसी और उपपद