पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७६
हिन्दुस्थानी शिष्टाचार

यदि किसी बड़े आदमी के यहांँ मिलने को जाना हो तो उनके अवकाश का पूरा पता लगा लेना चाहिये और जाकर किसी के द्वारा अपने आने की सूचना भिजवा देना चाहिये। उन सज्जन के पास पहुंँचने पर उपयुक्त आसन ग्रहण करना उचित है और संक्षेप में उन्हें भेंट का तात्पर्य बता देना चाहिये । कार्य हो जाने पर कुछ समय अोर बेठना अनुचित न होगा । इसके पश्चात् पृवेक्ति महाशय की आज्ञा लेकर चले आना योग्य है। किसी के यहांँ कभी न जाना जैसा अनुचित है उसी प्रकार बार-बार जाना अयोग्य है । यदि किसी के यहां जाने से जाने वाले को ऐसा जान पड़े कि उसके जाने से गृह-स्वामी को खेद होता है तो ऐसे मनुष्य के यहाँ उसे कभी न जाना चाहिये । कहा भी है—

वचनन में नहिं मधुरता, नेनन में न सनेह ।
तहाँ न कवहुँ जाइये, कचन घरपे मेह ॥

एक दूसरे के यहाँ आने-जाने से परस्पर मेल-मिलाप बढ़ता है, इसलिये यदि कोई परिचित व्यक्ति अथवा मित्र, जिसके साथ आवागमन का सम्बन्ध है, बहुत समय तक किसी के यहाँ न जावे, तो दूसरे मनुष्य को उसके यहाँ उपयुक्त अवसर पर जाना अनुचित न होगा। इससे इस बात का भी निर्णय हो जायगा कि यह मनुष्य जाने वाले से किसी प्रकार अप्रसन्न तो नहीं है। बहुधा उच्च स्थिति के महानुभाव निम्न-स्थिति के लोगों के यहांँ मिलने नहीं पाते । यदि उन्हीं का काम हो तो भी वे इन्हें बुलाने को सवारी भेज देते हैं। दो-चार बार ऐसे महानुभावो की इच्छा-पूर्ति की जा सकती है, पर उनके बढ़ते हुए दुराग्रह को कम करने की आवश्यकता है । ये लोग निमन्त्रण पाकर भी अपने से छोटे लोगों के यहाँ आने की कृपा नहीं करते जिससे शिष्टाचार की बड़ी अव- हेलना होती है। ऐसी अवस्था में सज्जनों का यह कर्तव्य है कि