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पांँचवाँ अध्याय


कि कदाचित् आवाज सुनकर कोई द्वार खोलने को और कुछ सूचना देने को आवे ।

गृह-स्वामी को उचित है कि वह अपने यहाँ आने वाले सज्जन का उसकी योग्यता के अनुसार स्वागत करे और उसे आदर पूर्वक बिठावे । कुशल प्रश्न के पश्चात् उससे कुछ ऐसी बात करना चाहिये जो उसकी रुचि के अनुकूल हो अथवा उसके काम-काज से सम्बध रखती हो। उसके आने का कारण पूछने की उतावली कभी न की जावे । वह बात-चीत में बहुधा आप ही प्रकट हो जाता है अथवा कुछ समय के पश्चात् चतुराई से पूछा जा सकता है । यदि तुम्ह अधिक समय न हो और बेठने वाले के कारण तुम्हारे किसी आवश्यक कार्य में हानि होने की सम्भावना हो तो तुम्हे अपनी कठिनाई नम्रता-पूर्वक और चतुराई से जता देना चाहिये। ऐसे अवसर पर शिष्टाचार का अधिक पालन करने से लाभ के बदले हानि होगी। मिलने-वाले को भी उचित है कि वह गृह- स्वामी के सुभीते का पूरा ध्यान रक्खे और उसके कुछ कहने से अप्रसन्न न हो । यदि किसी मुलाकाती को हमारे यहाँ बैठने में अधिक समय लग जावे तो हमारा कर्त्तय यह है कि हम उससे कुछ जल पान करने के लिए निवेदन करें और यदि उसके अस्वीकृत करने पर भी हमे यह अनुमान हो कि आग्रह करने पर उसे आपत्ति न होगी तो हमे चाय, फल अथवा मिष्टान्न से उसकी तृप्ति करना चाहिये।

यदि किसी मित्र या परिचित व्यक्ति से बाहर अथवा सड़क पर भेंट हो तो वहाँ घण्टो खड़े रहकर बात-चीत करना उचित नहीं। यदि विषय लम्बा हो तो कुछ दूर तक साथ-साथ चल कर बात- चीत कर ली जाये, पर ऐसा न हो कि किसी को दूसरे की बात सुनने के लिए विवश होकर कई जरीब जाना पड़े।