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पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/९

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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार

प्रथम अध्याय

शिष्टाचार का स्वरूप

(१) शिष्टाचार का लक्षण और महत्व

‘शिष्टाचार' शब्द का अर्थ ‘शिष्ट (सभ्य) लोगो का बर्ताव' है। शिष्टाचार में उन सब आचरणों का समावेश होता है जो शिक्षित जनो के योग्य समझे जाते हैं और जिनके व्यवहार से किसी समाज वा व्यक्ति को अपना काम-काज स्वतनता पूर्वक करने का सुभीता रहता है और उसके मन को सन्तोष तथा आनन्द प्राप्त होता है । इस लक्षण के अनुसार दूसरे को अपने काम में सुभीता और संतोष पहुँचाना ही शिष्टाचार का मुख्य उद्देश है। यदि कोई समाज या व्यक्ति ऐसा काम करता हो जिसे अधिकाश लोग अनुचित समझते हैं तो केवल शिष्टाचार के अनुरोध से अन्य समाज या व्यक्ति उस अनुचित कार्य मे हस्तक्षेप नहीं कर सकता । ऐसे अनुचित कार्यों के रोकने के लिए व्यक्ति, समाज अथवा सरकार को अपने अन्य कर्त्तव्यों या अधिकारो का उपयोग करना आवश्यक होता है। यद्यपि इन कर्त्तव्यो और अधिकारों का विवेचन करना इस पुस्तक का उद्देश्य नहीं है, तो भी इस विषय में शिष्टाचार का यह उपयोग हो सकता है कि अनुचित कार्य करने वाले के साथ बातचीत और व्यवहार करने में दूसरा मनुष्य ऐसा बर्ताव करे जिससे उस व्यक्ति को बिना कारण मानसिक वा शारीरिक कष्ट न