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निकले जा रहे हैं और पी नहीं सकता। आस पास लोग उदास खडे़ हैं।

३—थोड़े ही दिन पीछे शेरशाह नामक एक पठान सरदार ने हुमायूं पर चढ़ाई कर दी। हुमायूं उस से लड़ने का पूर्व की ओर चला। शेरशाह पहाड़ को भाग गया और हुमायूं चलता चलता बङ्गाल में पहुँचा भार वहाँ विषय भाग में पड़ गया मानो उस किसी बेरी का डर ही न था।

४— ज्योँही बरसात आई और देश में पानी पानी हो गया शेरशाह पहाड़ पर से उतर आया। अपने दूतों से जान लिया था कि हुमायूं अपना समय नष्ट कर रहा है। बङ्गाल से जो दिल्ली की सड़क जा रही थी उस पर ऊंची और दूढ़ होवार धनवा दी और उन पर सिपाही बैठा दिये। उस ने राह ऐसो बन्द की कि कोई दिल्ली से न बङ्गाल को आ सके न बङ्गाल से दिल्ली जा सके। हुमायूं को न कोई समाचार मिला और सहायता के लिये सिपाही।

५—तब हुमायूं ने बिचारा कि बङ्गाल से चल देना चाहिये पर उस के सिपाहियों घोड़ों और बैलों तक को ज्वर आ गया। जब उस ने देखा कि शेरशाह से लड़ाई में जीत न होगी तो उस ने सन्धि कर ली और कहा कि हम तुम को सारा बङ्गाल देश देते हैं। शेरशाह ने कहा अच्छा तो आप दिल्ली को लौट जाइये।

६—हुमायूं और उस के सिपाही शेरशाह की बातों में