पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१६९

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( १६१ ) करनेवाला तो कोई था नहीं, महरठो ने इस को ले लिया। जब भीतर घुले तो लूट की चिन्ता हुई पर वहाँ कुछ बचा ही न था क्योंकि अहमद शाह सब उठा ले गया था। एक वस्तु उस ने छोड़ दी थी। यह दरवार के कमरे की छत थी। कदाचित् अहमद ने यह समझा हो कि एक दिन मैं भी हिन्दुस्थान का बादशाह हो जाऊँगा इसी से उस ने उसे नहीं लिया था यह छत चाँदी की थी। महरठों ने इस को तोड़ डाला और गला दिया तो उस में से सत्तर लाख रुपये का माल निकला।

१७-दिल्ली की यात्रा में महरठे सरदारों में कई बार

झगड़ा बखेड़ा हो गया। होलकर और सूर्यमल ने लड़ाई में अपना अन्म बिता दिया। इन्हों ने जब भाऊ की सेना देखी जिस में कवायद लिखाई हुई पैदल, भारी तोपे और हाथी, रेशमी डेरे और सेनापतियों की स्त्रियों और नौकर चाकर थे तो वह बोले, "तुम समझते हो कि हम पठानों से जमकर लड़ाई लड़ सकते हैं। न यह महरठों की पुरानी रीति है और न शिवाजी ने कभी ऐसी लड़ाई लड़ी थी। हमारी जान में सबसे अच्छी बात यह है कि भारी तोपे, डेरे, रलिया और नौकर चाकर किसी सुरक्षित गढ़ छोड़ दिये जायें जिसमें कदाचित तुम हार जाओ तो तुम को भी शरण मिले। हलके घोड़े और पैदल साथ ले लो, जल्दी से इधर उधर भाग सके और महारठों की पुरानी