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न जायं।" पर श्रीराचन्द्रजी ने किसी की न सुनी। यह बोले, "क्षत्रिय राजा का धर्म है, कि अपनी बात पर दृढ़ रहे । हमारे लिये बन में भर जाना इससे अच्छा है कि, हमारे पिता का वचन टले।"

७—श्रीरामचन्द्रजी की इच्छा न थी कि सीताजी भी साथ जायं। वे समयते थे कि सीताजी वन में न रह सकेगी। उन्होंने सीताजी से कहा कि तुम पर रहो पर सीताजी ने माना। ये बोली "जहां आप आयंगे वहीं मैं भी जाऊगी। मैं आपकी अर्म-एनीट और आपका साथ छोड़ नहीं सकती। का मेरा आपका नाता यही है कि जब तक आप महल में रहें आपके साथ रहूं ? आप जहां रहेंगे वहीं मुझको सुख मिलेगा। आपके साथ विकट वन महल हों जायंगे और आपके बिना अच्छा से अच्छा महल सुना वन लगेगा। झाप मुझे घर रहने को न कहिये। जहां आप रहेंगे वहीं मैं रहूंगी, और जहाँ आप मरेंगे वही मैं भी मर जाऊंगी।"

८—श्रीरामचन्द्रजी के साथ उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी चलने को तैय्यार हो गये, और श्रीरामचन्द्र सीता और लक्ष्मण अयोध्या से निकल कर पहले मध्य भारत के पहाड़ीदेशों में पहुंचे और वहां से चलकर दक्षिण देश के एक बन में जाकर ठहरे। जहाँ नदियां पड़ती थीं वहां नाव पर चढ़कर पार जाते थे।