पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/२३१

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( २२३ ) जीतना चाहा। नको का शा बलुत खरा। वह यह जानता था कि मैं टीपू ऐसे बली शानु का सामना नहीं कर समता और उसने उसकी मालाबार और कुडा में लोगों के साथ क्रूरता का भी हाल सुना था। उसने और कोई बचने की राह न पा कर अंग्रेजों से विनती की कि साए मेरी सहायता करें और मुझे टीपू से नया । ५--उन दिनों लार्ड कार्डवालिस गधरनर अगरल था। उस ने टीपू को जोर छोड़ देने के लिये लिया। टीपू ने न माना तो ग्रेिजों ने उस से लड़ाई ठानी। निजाम और महरटों ने भी उनका साथ दिया क्योंकि उन्हों ने उसका बल बढ़ता देखा था और उन्हें डर था कि ट्रावनकोर लेने के पीछे हमारे ही ऊपर न टूट पड़े। ६.लाई कार्नवालीरू आए कलकले सो महास आया। वह अंग्रेजी सेना को अपनी क्रमान में लिये टीपू को खदेता श्री.असुर के पठार पर जा पहुंचा। निज़ाम और महरों की सेनाओं से कुछ लाभ न हुआ। उन्हों ने लड़ने के का अंग्रेजी सेना के लिये छोड़ दिया और आप मैसूर के गांव लूटने में लग गये। 62----hी सेना ने बालौर जीत लिया और टोपू की दी श्रीन पर चढ़ाई कर दो। यह मंसूर के निकट कावेरी नदी के किनारे बसा है; इसके चारों और कावेरी बहती है। जब अंग्रेजी तौर्य बोट पर गाले बरसाने