पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/७९

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और तेरे साथी भदों से लड़ कर भाग चुके हैं। और अब तू लियों से लड़ने आया है, हू बड़ा नी है और मर्द कहलाने योग्य नहीं।" ...-रानी की यह बात सूबेदार को डंक सी सुमी और उसने अपने प्रामाग्थिलों को उसको पकड़ने का हुकुम दिया। रानी ने चिल्लाकर कहा कि मेरे पीर पति ने को अपने बैरी ले हार नहीं मानी और न मैं मानॅगी। या यहां कोई राजपूत ऐसा नहीं है जो एक राजपूत माता और बहिन की मर्यादा रखे ! क्या कोई राजपूत यहाँ ऐसा नहीं जो एक राजपूत राजा की रानी के लिये लड़े। कोई हो तो मैं उसको पुकार कर कहती है कि ऐसे अवसर पर मेरी सहायता करे और मेरी पत रखे। १०-रानो के मुंह से यह शब्द निकलने भी न पाये थे कि दो राजपूस अभय और निर्भयचन्द जो वहीं खड़े थे अपने साथियों के साथ रानी के शत्रुओ पर टूट पड़े और रानी और उसकी सहेलियों को बीच में करके सूबेदार के सिपाहियों को काटते चले गये। इतने में उन्हीं में से एक घोड़े पर अरगल की मदद को दौड़ गया। कोसों तक लड़ाई होती गई। उनमें बहुत घायल हुए और बहुतेरे मारे गये। अन्त में थोड़ी देर पोछे अभयचन्द और उनके दो तीन सगोतियों के सिवा कोई न बचा। अब उनके भी बचने की आशा जाती रहो। इतने में एक शब्द सुनाई दिया और राजा गौतम