पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/९५

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३-जब बाबर का वार भरा यह तेरह बरस का था। उस को अपनी जान बचाने के लिये अपने निर्दयी चया से लड़ना पड़ा जिस ने उस से तुर्किस्तान की छोटी रियासत छीन ली थी। बीम बरस तक वह इधर उधर घूमता फिरा। उसे बिना बिछौने के धरती पर कभी कभी खुले मैदान में सोना पड़ता था।अन्त को उसने देखा कि जन्मभूमि तुर्किस्तान में ठहरने में कोई लाभ नहीं क्योंकि यहाँ मुक भी बढ़ कर बीर सरदार रहते हैं।तब उसने सिपाहियों से कहा तुम मेरे साथ अफगानिस्तान चलो। उनको भी बाबर की भांति कोई धर बार न था, इसलिये वह भी चलने को तैयार हो गये तुर्क अफगानों से बली और वीर थे और सहज ही उनका देश दवा बैठे।


                २५–वीर बाबर।  
 पानीपत की लड़ाई और मुग़लराज की स्थापना।
१--बाबर ने काबुल में थोड़े ही दिन राज किया था

कि उसका यश भारत में फैलने लगा। वह बड़ा धुद्धिमान और उद्दार बादशाह था और बड़ा वीर और चतुर सेनानायक मी था।दिल्ली के बादशाह इब्राहीम लोदी का शासन ऐसा बुरा था कि उसी के सरदार उस से बिगड़ गये और राजपूत उस से द्वेष मानने लगे। बड़े बड़े राजपूत