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पृष्ठ:हीराबाई.djvu/१४

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हीराबाई


छठवां परिच्छेद।

प्रत्युपकार।

"वदनं प्रसादसदनं सदयं हृदयं सुधामुचों वाचः।
करणं परोपकरणं येषां केषां न ते वन्द्याः॥"

(सुभाषिते)

इतने ही में वहांपर एक परमसुन्दरी स्त्री, जिसकी अवस्था तीस बरस के लगभग थी, पर तौभी वह बीस बरस की नौजवान औरत के समान जान पड़ती थी, आगई और विशालदेव की ओर देख, हाथ जोड़कर बोली,-"महाराज! अगर आपकी कमला आपके पास ही रहे, पर सारी दुनियां यही जाने कि आपने अपनी कमला क़ाफ़िर अ़लाउद्दीन को देदी और वह पापी भी कमला को पाकर ख़ुश होजाय तो बतलाइए, -इसमें तो आपको कोई उज़्र न होगा?"

उस औरत की ये विचित्र बातें सुन राजा-रानी उसका मुंह निहारने लगे और विशालदेव ने घबरा कर कहा,-

"हीराबाई! यह तुम क्या कह रही हो? हाय! एक कमला की दो कमला क्योंकर होसकती हैं?"

उस स्त्री का नाम हीराबाई था, उसने कहा,-"हां महाराज! आपकी प्यारी कमला तो आप ही के पास रहे, पर दुनिया यही जाने कि आपकी