पृष्ठ:हृदयहारिणी.djvu/१०

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(पहिला
हृदयहारिणी



की रक्षा आपही ने की होगी।"

यह सुन कर युवक ने अपनी छोटीसी धनुहीं की ओर देखा और मुस्कुराकर कहा,-" भाइयों! भला इस छोटी सी धनुष से इतना बड़ा काम क्यों कर हो सकता है?"

दूसरे ने कहा,-" क्यों नहीं हो सकता! हिन्दू वीर क्या नहीं कर सकते!"

युवक ने कहा,-" आपका कहना ठीक है, पर अब भारत का वह दिन नहीं रहा। अब तो वीरता का नाम भर रह गया है। हां, जब भारत में एका था, तब वीरता भी अपनी पूरी औज पर थी; किन्तु जब से फूट का पौरा आया, वीरता ने भी यहांसे किनारा कसा। इस लिये अब यह कहा जाय तो अनुचित न होगा कि,- निर्वीर-मुर्वीतलम्,' क्यों कि एका से बढ़ कर दूसरी वीरता संसार में हई नहीं।"

दूसरे ने कहा,-" आपका कहना ठीक है, पर हमारे प्रश्न का उत्तर तो आपने दिया ही नहीं।"

युवा ने मुस्कुरा कर कहा,-" भला, मैं उस बात का क्या उत्तर दूं? मुझ में तो चेंटी मारने की भी सामर्थ्य नहीं है। अस्तु, आप लोग यह बतला सकते हैं कि वह बालिका किधर गई?"

इस पर कई लोगों ने, जिस ओर वह बालिका गई थी, युवक से कह दिया और उसने उसी ओर जल्दी जल्दी अपना पैर बढाया।

युवक की बातों का बहुतों ने तो मर्मही न समझा; अनेकों ने संदेहही में अपना जी उल्झा रक्खा और कइयों ने इस बात का निश्चय कर लिया कि,-'इस युवक के अतिरिक्त हाथी का मारनेवाला कोई दूसरा नहीं है।'

निदान, धीरे धीरे भीड़ छंट गई राजमार्ग में थोडे से ही लोग आते जाते दिखलाई पड़ने लगे और संध्या होते होते नव्वाब की ओर से दूसरी मुनादी फेरी गई कि,-" जिसने हाथी को मारा है, वह दर्वार में हाज़िर होकर इनाम लेवे;" पर जहाँ तक हम जानते हैं, आज तक कोई भी हाथी मारने का इनाम लेने नबाव के पास नहीं गया; किन्तु यदि कोई जाता और इनाम चाहता तो नवाब सिराजुद्दौला उसे क्या देता? यही कि नवाब उस व्यक्ति को भी झटपट वहीं पहुंचा देता, जहां पर उसका हाथी मर कर