बाद तुगरल ख़ां और उसके अनन्तर (सन् १२८२ ई०) नासिरुद्दीन। फिर क्रम से नासिरुद्दीन के दो बेटे कैकयस और फ़ीरोज़शाह बंगाले के हाकिम हुए। फ़ीरोज़शाह के मरने पर उसका बड़ा बेटा शहाबुद्दीन (सन् १३१८ ई०) बंगदेश का हाकिम हुआ; पर थोड़े ही दिनों बाद दिल्ली के बादशाह गयासुद्दीन ने बंगाले में आकर उसे गद्दी से उतार, उसके भाई नासिरुद्दीन को गद्दी दी। कुछ दिन पीछे जब मुहम्मद तुग़लक दिल्ली का बादशाह हुआ, (सन्१३३५ ई०) तो उसने क्रम से वहादुरशाह और बहराम खां को बंगाले का हाकिम बनाया।
बहराम ख़ां के मरने पर उसका गुलाम फ़क़ीरुद्दीन (सन् १३३८ ) बंगाले का स्वाधीन नव्वाब हुआ और उसके मरने पर उसका बेटा मुज़फ्फ़र ग़ाज़ी। फिर (सन् १३५८ ई०) मग़सुद्दीन, फिर उसका बेटा सिकन्दशाह, तदनन्तर सिकन्दर का लड़का गयासुद्दीन नव्वाब हुआ (सन् १३८६ ई०) और फिर उसे मारकर दिनाजपुर के महाराजा गणेश ने बंगदेश पर (सन् १४०५ ई०) अपनी हुकूमत कायम की।
उसके मरने पर उसका बेटा 'यदू' मुसलमान हो गया और जलालुद्दीन मुहम्मद अपना नाम रखकर बंगदेश का हाकिम हुआ और उसके बाद उसका बेटा अहमदशाह।
अहमदशाह के मरने पर मुसलमानों ने शमसुद्दीन के बंश के नासिरुद्दीन को बंगाले का हाकिम बनाया और उसके मरने पर उसका बेटा बर्बरशाह मालिक हुआ। फिर (सन् १४८७ ई०) उसके गुलामों में से उसे मार एक हाकिम बन गया और फिर यहां तक मार काट बढ़ी कि दीवान सैयद अलाउद्दीन हबशी
गुलामों को मार (सन् १४९४ ई०) आप हाकिम बन बैठा। उसके बाद उसका बेटा नशरतशाह हाकिम हुआ। तदनन्तर उसके भाई महमूदशाह ने उसके पुत्र फ़ीरोजशाह को मार, तख्त पर अपना कब्जा किया; किन्तु थोड़ेही दिनों पीछे (सन १५३६ ई०) शेरशाह ने उसे मार कर बंगाले की बागडोर अपने हाथ में ली। शेरशाह के मरने पर उसके बेटे आदि कई बंगाले के हाकिम हुए, पर अन्त में सुलेमान नामक मुसलमान ने (सन् १५६३ ई०) बंगाले में अपना दबदबा जमाया। उसके मरने पर उसका बेटा बारिदशाह