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परिच्छेद)
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आदर्शरमणी



नव्वाब हुआ, पर दूसरे साल उसे मार कर दायूदखां नव्वाब हुआ; किन्तु अकबरशाह ने उसे निकाल कर अपनी ओर से हुसेनकुलीखां को (सन् १५७६ ई० बंगाले का हाकिम बनाया। यहांसे बंगाले की हुकूमत पठानों के हाथ से निकल कर मुगलों के हाथ में गई।

सन् १५७८ ई० में हुसेनकुलीखां के मरने पर उनका लड़का मुज़फ्फ़रखां बंगाले का नबाब हुआ, पर गोलमाल करने के कारण वह निकाला गया और उसकी जगह पर राजा टोड़लमल और फिर राजा मानसिंह बंगाले की हुकूमत करते रहे।

फिर (सन् १६०५ ई०) अकबरशाह के मरने पर जहांगीर ने कुतुबखां को बंगाले का हाकिम बनाया। इसके बाद क्रम से जहां-गीरकुलोखां, शेखइस्लामखां, कासिमखां, इबराहिमखां (नूरजहांबेगम का भाई) और शाहजहाँ (जहांगीर का लड़का) बंगाले के हाकिम हुए और सन् १६२८ ई० में शाहजहां ने बादशाह होकर कासिमखां को बंगाले की हुकूमत दी। उसके बाद इसलाम खां मसहदी (सन् १६३७ ई०) और फिर शाहजहां का दूसरा बेटा, जिल का नाम सुजा था, बंगाले के सूबेदार हुए। सुजा के मारे जाने पर मीर जुमला बंगाले का सूबेदार हुआ और उसके बाद नूरजहाँ का भतीजा शाइस्ताखां। (सन् १६६४ से सन् १६८६ तक)

तदनन्तर इब्राहीमखां बंगाले का हाकिम हुआ और सच तो यह है कि हिन्दुस्तान में अंग्रेजों की जड़ जमाने वाला यही था, जिसने बादशाह औरंगजेब को बहुत कुछ लिख पढ़कर अंग्रेजों के ख़ातिरखाह बहुतेरे सुभीते करा दिए थे। फिर मुर्शिदकुली खां (सन् १७०१ ई०) बंगाले का नव्याब हुआ। इसके मरने पर सर्फ राज़ ख़ां बंगाले का हाकिम हुआ, पर थोड़े ही दिनो बाद उसे मार कर नेकनाम अलीवर्दीखां नव्वाब हुआ। यह अंग्रेजों की चालबाजी और शक्ति को भलीभांति समझ गया था, इसलिये उसने सौदागरी के मामले में उनसे कभी छेड़छाड़ नहीं की। यद्यपि उस के मुसाहबों ने अग्रेजों के विरुद्ध उसे बहुत कुछ उभाड़ा, पर वह किसीकी पट्टो में न आया और उसने अपने मुसाहबों से साफ़ कह दिया कि,-

"भाइयों! थल में आग लगे तो वह मुश्किल से बुझाई जा-