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२६
(पांचवां
हृदयहारिणी



सकती है, पर जो जल में ही आग लगे तो वह कैसे बुझाई जास-केगी? देखना थोड़े ही दिनों में ये सफेदरू सौदागर सारे हिन्दुस्तान पर कब्जा कर लेंगे।" आखिर, उस दीर्घदर्शी नव्वाब अली- वर्दीखां की भविष्यवाणी अन्त को सच ही हुई।

अलीवर्दीखां की तीन लड़कियां थीं,-"नूरी, शीरी और इमामन; जो उसके भाई हाजी अहमद के तीनों बेटों,-निवाइस महम्मद, सैयद अहमद और जैनुद्दीन को ब्याही गई थीं। अलीवर्दी खां ने अपने तीनों दामादों में से बड़े निवाइस महम्मद को ढांके का, बिचले सैयद अहमद को उड़ीसे का और छोटे जैनुद्दीन को बिहार का हाकिम बनाया था। फिर जब जैनुद्दीन को लड़का हुआ और वह बड़ा हुआ तो उसे अलीबर्दीखां ने अपना उत्तराधिकारी बनाया; उसीका नाम सिराजुद्दौला था।

सन् १७५६ ई० में सदाशय अलीवर्दीखां मर गया और उसके पहिले ही सिराजुदौला के दोनों चचा निवाइस महम्मद और सैयद अहमद भी मर गए थे, जिनमें सैयद अहमद, जो उड़ीसे का हाकिम था, अपने बेटे सकतजंग को अपना उत्तराधिकारी बना गया था। आखिर, अलीवर्दीखां का जानशीन नाती सिराजुद्दौला बंगाले के तख्त पर बैठा और मुर्शिदाबाद को उसने अपनी राजधानी बनाई। फिर तो उसने कैसे कैसे भयानक अत्याचार और कुकर्म किए और कैसी राक्षसी निर्दयता का परिचय दिया, इसका साक्षी इतिहास है। इसके साथ अंग्रेजों की कैसी कैसी लड़ाइयां हुई, यह बात इतिहास में भली भांति लिखी हुई है, जिसके दोहराने की आवश्यकता नहीं है। हां, यहाँ पर केवल इतना ही कहना है कि बंगाले का अन्तिम नव्वाव सिराजुद्दौला ही हुआ। यद्यपि उसके बाद भी मीरजाफ़र आदि कई नव्वाब हुए, पर वे अंग्रेज़ सौदागरों के हाथ के निरे खिलौने थे, इस लिये उनका यहां पर नाम गिनाना व्यर्थ है। हां, तो सिराजुद्दौला ने लड़ाई में अपने भाई सकतजंग को भी मार डाला था। यदि उसके सेनापति मीरजाफरखां, ख़जानची, राजा रायदुर्लभ और महाधनी, महाजन, जगतसेठ महताबराय, सेठ अमीचंद आदि लोग उसके अत्याचार से घबरा कर उससे विश्वासघात न करते और क्लाइब से न मिल गए होते तो अंग्रेजों के लिए इतनी जल्दी सिरजुद्दौला का दूर करना कठिन होता,किन्तु