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(ग्यारहवां
हृदयहारिणी।


चित्र उतारें? इसका उत्तर कदाचित आप यह देंगे कि,—"अजी! तो इस तुच्छ बात के लिये तुम कवि होकर इतना क्यों घबरा उठे! देखो, कुसुम की वर्णना क्या यों नहीं हो सकती कि,—

"चंद कैसो भाग-भाल, भृकुटी कमान कैसी,
मैन कैसे पैने सर, नैननि बिलास है।
नासिका सरोज, गंधबाह से सुगंधबाह,
दार्यों से दसन, कैसो बिजुरी सो हास है॥
संख कैसी ग्रीवा, भुज पान से उदर अस,
पंकज से पांय, गति हंस कैसी जास है।
देखी बर बाम, काम-बाम सी सरूपमान,
सोने सो सरीर, सब सोंधे की सी बास है॥"

और भी—

"कंज से चरन, देवगढ़ी से गुलुफ सुभ,
कदली से जंघकटि सिंह पहुंचत है।
नाभी है गंभीर, ब्याल रोमावली, कुच कुंभ,
भुज ग्रीव भाप कैसी ठोढ़ी बिलसत है॥
मुखचंद बिम्बाधर चौंका चारु सुकनास,
खंज मीन नैनन बंकाई अधिकत है।
भाल आधो बिधु भाग करन अमृत कूप,
बेनी पिकबैनी की सुभूमि परसत है॥"

किन्तु, पाठक! आपको धन्यवाद है! आपके इस उपदेश और दृष्टान्त के लिये आपको कोटि कोटि धन्यवाद है!!! आप हमको 'कवि' कहकर ताना न मारिए! क्योंकि यदि हम कवि होते तो फिर इतना रोना ही काहे का था! सो, हम न तो कवि हैं और न काव्यविशारद! तो क्या हैं? एक महानीरस, अल्हड़!!! इसलिये