पृष्ठ:हृदयहारिणी.djvu/६९

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परिच्छेद)
६५
आदर्शरमणी।


नरेन्द्र,-"तो फिर इस (मुझ) अपराधी को कुछ दण्ड भी तो मिलना चाहिए।"

कुसुम,-"हां, अवश्य मिलना चाहिए और वह दण्ड यह है!"

इतना कहकर वह नरेन्द्र ले ज़रा दूर हट गई और बोली- "क्यों! उस अपराध के लिये क्या यह दण्ड ठीक नहीं है!"

नरेन्द्र ने उसे पास खैंचकर कहा,-"प्यारी संसार में इससे बढ़कर प्रणयी के लिये और कोई दूसरा दण्ड हई नहीं; इसलिये अब तो मैं दिन रात में ऐसे ऐसेलाखों अपराध किया करूंगा, जिसमें मुझे तुम बराबर ऐसाही दण्ड दिया करो!"

कुसुम ने कहा,-"अच्छा, एक बात पूछूं?"

नरेन्द्र,-"क्या?"

कुसुम,-"यही कि लवंगलता के व्याह में तुम इतनी ढिलाई क्यों कर रहे हो?"

नरेन्द्र,-"क्या तुम यह बतला सकती हो कि लवंग मदनमोहन को हदय से चाहती है?"

कुसुम,-"इसमें कुछ भी सन्देह न करना चाहिए, क्यों कि जहां तक मैंने परखा है, वहां तक यही बात साबित हुई है कि वे दोनों एक दूसरे को जी-जान से प्यार करते हैं।"

नरेन्द्र,-"ठीक है, मैं भी ऐसा ही समझता हूं और तुम्हारे कहने से तो अब इस विषय में कुछ संदेह रहा ही नहीं।"

कुसुम,-"तो फिर इस काम को झटपट निपटा डालो।"

नरेन्द्र,-"हां, मैं भी यही चाहता हूं, किन्तु एक अड़चन बीच में यह आपड़ी है कि जिसके कारण अभी कुछ दिन तक और भी लवंगलता के ब्याह को रोकना पड़ेगा। हां, इस बात को तुम निश्चय जानो कि इस झंझट से छुटकारा पाते ही मैं पहिले लवंगलता का ब्याह करके तब दूसरा काम करूंगा।"