पृष्ठ:हृदयहारिणी.djvu/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
परिच्छेद)
७३
आदर्शरमणी।



कहा,-"खुदा के वास्ते अब इस बेकस पर रहम कीजिए और अगर इस नादान की कुछ खता हो तो उसे मुआफ़ कीजिए।" किंतु विश्वासघातक और राज्यलोभी मीरजाफर बराबर यही कहता रहा कि,-"जहांपनाह! आज लड़ाई मौकूफ़ रहने दीजिए, फौज पीछे हटा लेने दीजिए, कल फिर ज़रूर लड़ेंगे।" और जगतसेठ ने तो यो हीं कह डाला कि,-"हुजूर का मुर्शिदाबाद ही तशरीफ लेचलना बिहतर होगा, क्यों कि इन सफेद देवों से फ़तहयाबी हासिल करना गैर मुमकिन है।”

निदान, सिराजुद्दौला को फ़ौज का मुड़ना था कि अंग्रेज़ उस पर पंजे झाड़कर इस तरह लपके,जैसे हिरनों के झंड पर चीते लपकते हैं। आख़िर, सिराजुद्दौला की फ़ौज तितर बितर होकर भागी और अंग्रेज़ों ने आठ मील तक उसका पीछा किया। बस, सिराजुद्दौला के नौकरों का विश्वासघात और यह पलासी की बिजय ही मानो भारतवर्ष में अंग्रेजी राज्य की जड़ जमाने का कारण हुई।

सिराजुद्दौला के भागने पर मुर्शिदाबाद के खजाने की रोकड़ मिलाई गई तो डेढ़ करोड़ रुपए के लगभग गिनती में आए, जो अहदनामें के अनुसार सबका दाम दाम चुका देने के लिये काफ़ी न थे। तब अंग्रेजों ने यह बात ठहराई कि,–'अहदनामें के बमूजिब आधे आधे रुपए तो अभी चुका दिए जायं और आधे तीन किस्तों में तीन साल के अंदर पटा दिए जायं।'

अन्त में इसी सम्मति के अनुसार आधे रुपए चुका दिए गए और इसके अलावे मीरजाफ़रख़ां ने सूबेदारी पाने की खुशी में सोलह लाख रुपए अपनी ओर से क्लाइव के नज़र किए! जब ख़ज़ाने से रुपए बंटने लगे, उस समय सेठ अमीचंद मारे आनन्द के फूले अंगों नहीं समाते थे, क्यों कि उन्होंने हिसाब लगाकर अपने हिस्से के तीस पैंतीस लाख रुपए जोड़ रक्खे थे; किन्तु जब फोर्ट विलियम किले के दरवार में अहदनामा पढ़ा गया और उसमें उनका नाम न निकला तो वे बहुत ही घबराए और चट बोल उठे कि,-" क्यों साहब! यह क्या बात है कि इस अहदनामे में मेरा नाम नहीं है?"

क्लाइव,-" हां, साहब! इसमें आपका नाम नहीं है।"

अमीचंद,-" मगर, साहब! वह तो लाल काग़ज़ पर था?"

क्लाइव,-" जीहां लेकिन वह लाल कागज सिर्फ आपको