पृष्ठ:हृदयहारिणी.djvu/७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
७४
पन्द्रहवां
हृदयहारिणी।



सब्ज़बाग़ दिखलाने के लिये लिखा गया था,इस वास्ते इन रुपयों में से आपको एक कौड़ी भी न मिलेगी।"

यह सुनते ही अमीचंद चक्कर खाकर धर्ती में गिर, बेसुध होगए और उनके नौकर चाकर उन्हें पालकी में डाल घर उठा लाए। जब वे होश में आए तो पागलपने की बातें करने लगे और उसी अवस्था में डेढ़ बरस तक अपने कर्मों को भोग, परलोक सिधारे!

राजा शिवप्रसाद सदा अंग्रेजों की खुशामद करते रहे, पर क्लाइव की यह बात उन्हें भी बुरी लगी और उन्होंने भी उसके लिये यों लिखा कि,-"अफ़सोस है कि क्लाइव ऐसे मर्द से ऐसी बात ज़हूर में आवे, पर क्या करें ईश्वर को मंजूर है कि आदमी का कोई काम बे ऐब न रहे। इस मुल्क में अंगरेज़ी अमल्दारी शुरू से आज तक मुआमले की सफाई और कौलक़रार की सचाई में मानो धोबी की धोई हुई सफ़ेद चादर रही है, केवल इसी अमीचंद ने उसमें यह एक छोटासा लगा दिया है।"

पन्द्रहवां परिच्छेद,
पाप का प्रायश्चित्त।

"अन्तः प्रच्छन्नपापानां शास्ता वैवस्वतो यमः।"

पलासी की लड़ाई से हारकर भागा हुआ सिराजुद्दौला पर मुर्शिदाबाद में आया, किंतु वहां भी उसके पैर न जमें; क्यों कि अपने दुराचरण के कारण उसे किसी पर कुछ भरोसा तो था ही नहीं! और भरोसा भी तो उसे तब हो सकता, जब कि उसने कभी किसीके साथ कुछ भलाई की होती। निदान, अपनी सैकड़ों बेगमों में से दो बेगम, एक खोजा और कुछ जवाहिरात साथ लेकर वह मुर्शिदाबाद से रात के समय भागा; किंतु उसका पाप उसका साथ कब छोड़ सकता था! सो, राज महल के पास एक जंगल में एक फ़कीर ने उसे पहिचान कर तुरंत वहांके हाकिम से इस बात की खबर करती।