कहता,-"अब यह किसी तरह नहीं बच सकती।" कोई चिल्लाता,"अरी बावली भाग जा, भाग जा, देखती नहीं कि नव्वाब का मतवाला हाथी तेरे ही ऊपर झपटा हुआ आरहा है।"
यो ही चारों ओर से लोगों की चिल्लाहट सुनाई देने लगी, पर कोई भी माई का लाल उस बिचारी अनाथ बालिका के बचाने के लिए आगे न बढ़ा।
ऊपर अपनी अपनी अटारियों से झांकती हुई स्त्रियों ने करुणा भरे शब्दों में कहना आरम्भ किया। एक बोली,-"हाय! बस इसी छिन में इसे हाथी चीरा चाहता है। दूसरी कहने लगी,-"हाय, हाय! संड घुमाकर कैसे बेग से हाथी दौड़ा आरहा है।" तीसरी ने कहा,-"अरी! यह देख, हाय, हाय! बस अब देर नहीं है। बस एक ही झपट्टे में इसे हाथी लिया चाहता है।
निदान, भय चकित बालिका जहांकी तहां खड़ी ही रह गई और वह हाथी उसके बहुत ही समीप आगया। संभव था कि वह अपनी सूंड में लपेट कर उस बालिका को दे मारे, या उसे अपने पैरों से कुचल डाले इतने ही में एक जहरीला तीर न जाने किधर से आकर उस हाथी की दोनों आखों के ठीक बीच में लगा, जिसके लगते ही वह चिग्घाड़ें मारता हुआ पीछे की ओर घूमा और जमीन में गिर, दो चार बार हाथ पैर मार कर मर गया।
हाथी के मरते ही बात की बात में फिर भीड़ जुड़ गई और बालिका मन ही मन जगदीश्वर को धन्यवाद देती हुई, एक ओर को चल निकली, पर उस विचारी का 'लावा' वहीं धूल में मिल गया था।
हाथी के मरने पर फिर घनी भीड़ जम गई थी, उसमें से एक व्यक्ति ने कहा,-"वाह,वाह! यह कैसी बिचित्र बाणविद्या की शिक्षा है! मानो साक्षात अर्जुन ने अपने गाण्डीव धनुष पर आग्नेया बाण खैंच कर इस गजेन्द्र को मारा हो!"
दूसरे ने कहा,-"जो कुछ हो, पर हमें तो इस बात का पूरा भरोसा है कि यह बीर अवश्य कोई हिन्दू होगा; क्यों कि बिना हिन्दुओं के ऐसी बाणविद्या का परिचय भूमण्डल में और कौन दे सकता है? यदि हिन्दुओं में कुछ दोष है तो केवल यहो कि इनमें 'एका' नहीं है। यदि इनमें आपस की फूट न होती तो इस पवित्र भारतभमि पर दुराचारी यवनों के पैर न पड़ते। इतिहास के जानने