पृष्ठ:हृदयहारिणी.djvu/७

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परिच्छेद)
आदर्शरमणी।



मुट्ठी में दबे हुए काग़ज़ को नहीं गिरने दिया। देखते देखते मैदान और सड़क तमाशाइयों से खाली हो गई, केवल वही बिचारी बालिका खड़ी खड़ी रोती, मिट्टी में मिले हुए लावे के लिये हाथमलती और पछताती थी। उस समय उसकी घबराहट इतनी बढ़ी हुई थी, जैसी अपने जूथ से बिछुरने पर भोली हरिनी की होती है।

देखते देखते वह राजपथ तमाशाइयों से खाली हो गया, केवल वही बिचारी बालिका भैचकसी हो, कभी धूल में मिले हुए लावे की ओर और कभी इधर उधर देखती हुई जहां की तहां ठिठक रही थी; कि इतने ही में एक मतवाला हाथी झूमता भामता, चिग्घाड़ें मारता, सूंड़ फटकारता, उसी ओर को दौड़ता हुआ आने लगा, जिस ओर वह अनाथिनी बालिका घबराहट में फंसी हुई खड़ी थी।

यह बात हम अभी ऊपर कह आए हैं कि आज किसी तमाशा होने की मुनादी सुन कर नब्वाब-भवन के सामने मैदान में तमाशाइयों की बड़ी भीड़ भाड़ इकट्ठी हुई थी, पर वह कौनसा तमाशा था, जिसके लिये नव्वाब ने मुनादी पिटवाई थी? इस विषय में हम इतना ही लिखना उचित समझते हैं कि दुराचारी नव्वाब सिराजुद्दौला को उस दिन यह तरंग सूझी थी कि,-" जब खूब घनी भीड़ इकट्ठी होजाय, तो उस पर एक मतवाले हाथी को छोड़ना और फिर वह हाथी किस किस को किस किस तरह चीरता, फाड़ता, कुचलता और मारता है; यह तमाशा देखकर अपने दिल को शाद करना।” सो जब भली भांति मेला जम गया तो नव्वाब की आज्ञा से मतवाला हाथी छोड़ा गया। उसी हाथी के कारण मेले में खलबली पड़ गई थी, बात की बात में मेला तितर बितर होगया था और लोग अपनी जान ले ले कर एक दूसरों पर गिरते हुए, जिसका जिधर मुंह पड़ता, भागे जारहे थे। उसी झमेले में फंस कर बिचारी बालिका की जो कुछ दुर्दशा हुई थी, उसका हाल हम ऊपर लिख आए हैं।

निदान, अपनी ओर मतवाले हाथी को आता हुआ देख कर भी वह बालिका जहांकी तहां कठपुतली की भांति खड़ी ही रह गई और चारों ओर से स्त्री पुरुषों का कोलाहल सुनाई देने लगा।

कोई कहता,-"हा! परमेश्वर! अब यह लड़की मरी।" कोई