पृष्ठ:हृदयहारिणी.djvu/९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
विज्ञापन
"उपन्यास-मासिक-पुस्तक"

उपन्याम के प्रेमियों को विदित हो कि"उपन्यास-मासिक-पुस्तक"नाम का मासिकपत्र कई वर्षों से बराबर हर महीने निकला करता था.जो कई कारणों से कई वर्ष तक बंद रहा, पर अब फिर नये सिरे से नई सज धज के साथ उसके निकालने का विचार किया गया है। एकहजार ग्राहकों के नाम रजिष्टर्ड होते हो यह मासिकपत्र फिर से निकलने लगेगा; अतएव उन्यास के प्रेमियों को बहुत जल्द एक एक कार्ड भेजकर अपना अपना नाम रजिष्टर में दर्ज कग लेना चाहिए। एक हजार ग्राहकों के नाम जब रजिष्टर्ड होजायगे, तब "उपन्यास" मासिक-पुस्तक फिर निकाली जायगी। इसलिये हिन्दी के प्रेमी और उपन्यास के रमिकों को जल्दी करनी चाहिये। इसका आकार डिमाई ८ पेजी, पांच फार्म अर्थात् ४० पृष्ठ का, जैग्मा पहिले था, अबभी वैसाही होगा। दाम भी बहुत नहीं, वही केवल दो रुपये साल सर्वत्र। तिसपर भी डांक महसूल कुछ नहीं। इस पत्र में एक उपन्यास के पूरे होने पर दमाग उपन्यास प्रारम्भ किया जायगा। लीलावती १ राजकुमारी २ स्वर्गीयकुसुम ३ ताग ४ चपला ५ हृदयहारिणी ६ लवंगलता ७ रजायाबेगम ८ माधवीमाधव पन्नाभाई १० मल्लिकादेवी ११ लखनऊ की कब्र १२ आदि उपन्यास इसी मासिकपत्र द्वाग छपे हैं।

जिन उपन्यास-प्रेमियों को इस "मासिक-पुस्तक" का ग्राहक होना हो, वे शीघ्र ही दो रुपये भेजकर ग्राहक बन जाय। और जो नमूना देखना चाहें, वे चार आने का टिकट भेजे। हां, इतना ध्यान रहेगा कि जो महाशय चार आने भेज कर नमूना मंगावेंगे, वे यदि पीछे ग्राहक होजांयगे, तो उनसे चार आने मुजरे देकर पौने दो रुपए ही लिए जायंगे। बी० पी० का खर्च एक आना ग्राहकों को ही देना होगा। हां, डांक महसूल कुछ नहीं लगेगा। इस विषय की चिट्टी पत्री आदि नीचे लिख ठिकाने से भेजना चाहिए।

श्रीकिशोरीलालगोस्वामी,--

सम्पादक "उपन्यास-मासिक-पुस्तक"

"श्रीसुदर्शन प्रेस" वृन्दावन (मथुरा) यू पी