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हृदय की परख

करके दोनो से सो जाने के लिये कहा। सुंदरलाल बोले―

"नहीं, आप तीन दिन से नहीं सोए। थोड़ा सो लें, फिर हम सो रहेंगे―तब तक बैठे हैं।"

बाद-विवाद के अनंतर उन्हें दोनों का यह अनुरोध मानना ही पड़ा, वह उठकर चल दिए।

सुंदर बाबू बोले―"देखो तो, अब क्या दशा है।"

शारदा ने जाकर देखा, शशि जग रही है, और उसके नेत्र प्रकृत हैं। वहीं बैठकर उसने कहा―"बहन शशिकला!"

रोगी ने कुछ काल देखकर कहा―"शारदादेवी!"

"हाँ, अब जी कुछ अच्छा है?"

"हाँ, पर अब मैं एकआध घड़ी की ही मेहमान हूँ! स्वामीजी कहाँ हैं, उन्हें बुलाओ तो।" सुंदरलाल दौड़े गए।

शशि बोली―"समय नहीं है। मेरी देखने और बोलने की शक्ति जा रही है। एक गुप्त बात सुन लो। तुम मुझे क्या समझती हो?"

शारदा सहम गई, पर धीरज से बोली―"प्यारी बहन।"

"पर मैं तुम्हारी नाशकारिणी हत्यारी राक्षसी हूँ।"

शारदा समझी, यह वायु में बक रही है। उसने कहा― "अच्छा, ज्यादा मत बोलो, सिर ख़राब हो जायगा।"

शशि बोली―"मैं बेहोश नहीं हूँ। सच बात है। मैंने ही तुम्हारे स्वामी को छीनकर तुम्हें विधवा बनाया है।"