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पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/११७

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पंद्रहवाँ परिच्छेद

सरला के आँसू बह रहे थे। उसने कहा―"और गृह- स्वामी को क्या दशा है?"

शारदा ने रोते-रोते कहा―"वह पागल जैसे हो गए थे। कहीं निकल गए। हम लोगों ने बहुत रोका, पर उन्होंने एक न सुनी। वह अपनी सब संपत्ति तेरे नाम लिख गए हैं।"

सरला चिल्लाकर रो उठी―"हाय! वह भी चले गए। हाय! मैं अपनी मा को एक बार मा कहकर भी न पुकार सकी।"

यह कहकर सरला बिलख बिलखकर रोने लगी, और फिर अपने कमरे में जाकर उसका दरवाजा बंद करके, खाट पर मुँह ढककर पड़ गई। शारदा भी दुःख के मारे द्वार बँद कर चुपचाप पड़ रही। उस विषाद-सागर में किसी को किसी की ख़बर न रही।