इस उदासी का मतलब समझा कि घर-गिरिस्ती के कितने ही झंझट रहते हैं, इससे यह होगी। पर आज इतने दिनों के बाद उसका रहस्य समझ में आया। तुम्हारे ही पिता उसे ले गए थे, और उसकी वह भारी बीमारी तुम्हारा प्रसव ही था। तुम्हारे पिता से लड़कर और तुम्हें छोड़कर वह चली आई, और व्याह कर लिया। माता-पिता तथा देवकरन ने अपनी बदनामी के कारण अत्यंत कौशल से यह भेद छिपाए रक्खा। इन २८ वर्षों में मैं कितनी ही बार शशि से मिली, पर उसने एक बार भी न कहा कि उसी ने मेरे सुहाग में आग लगाई है। अब सब घटना समझ में आ गई। तुम्हारा गर्भ यहीं रह गया था। मेरी प्यारी सखी ने मेरा सर्वस्व लूटकर……" शारदा का बाँध टूट गया। वह अब की बार फूट-फूटकर रो उठी।
सरला का रोम-रोम पिघल उठा था। वह दौड़कर शारदा से लिपट गई। उसने कहा―"मा-मा, रो मत। अब शक्ति नहीं है। मेरे प्राण निकल जायँगे। देखो, मैं तुम्हारी बेटी हूँ।"
शारदा ने उसे छाती से चिपटाकर कहा―"बेटी।"
सरला ने कहा―"मा।"
कुछ देर तक शांत रहकर सरला बोली―"फिर तुम्हारे माता-पिता क्या हुए?"
"पिता को मरे १५ वर्ष हो गए। पर मा तो तुम्हारे यहाँ आने के ७ मास प्रथम मरी थीं।"