पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/१३१

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सोलहवाँ परिच्छेद

देखा कि मैं काँप गई। वह कैसी दृष्टि (काँपकर) थी, हाय! उसका अर्थ मैं अब समझी।"

इतना कहकर शारदा ने अपने आँसू पोंछ लिए, और फिर बोली―"वह चले गए, और सदा को चले गए। आज २८ वर्ष हो गए, वह फिर न दिखाई पड़े। कहाँ गए, कुछ ठीक नहीं। तब से उस कुघड़ी की याद बराबर रहती है।" यह कहकर शारदा ने अत्यंत विषाद-भरी साँस ले ली। सरला ने देखा कि उसके आँसू सूख गए है।

शारदा फिर कहने लगी―"इसके बाद एक दिन सुना कि किसी कारण शशिकला अपने किसी संबंधी के यहाँ चली गई है। व्याह रुक गया, परंतु पाँच महीने बाद जब वह आई, तो बड़ी दुर्बल हो रही थी। पूछने पर कहने लगी, बड़ी भारी बीमारी हो गई थी, जिसके कारण शीघ्र आना नहीं हुआ। कुछ काल बाद उनके (भूदेव के) उन्हीं मित्र के साथ उसका विवाद हो गया। वह देखते-देखते राजरानी बन गई। यह सब क्या 'गोरख-धंधा' हो गया, और उसके पाँच मास तक ग़ायब होने तथा फिर वापस आने में मेरा क्या संबंध था, सो उस समय मुझे कुछ नहीं ज्ञात हुआ। पर मैं समझती हूँ कि माता-पिता तथा देवकरनजी को सब कुछ मालूम हो गया था। वे बड़े उदास रहते थे। देवकरन भी बड़े चिंतित रहते थे। भाई उन दिनों कलकत्ते में थे। उनकी परीक्षा का समय था, इसलिये वह न आए थे। मैंने