पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/१५१

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१५६ अठारहवाँ परिच्छेद क्या ? कोई घटना हुई है क्या ? यह तो पागल सी हो सरला ने चिल्लाकर कहा-'यह क्या चुपचाप सलाह कर रह हो ! बाबजी, क्या तुम मुझे घर से निकाल दोगे ? हाय, पुरुष-जाति कैसी हृदय-हीन है !" इतना कहकर सरला ने कपड़े फेक दिए । सुदर बाबू चुपचाप वैद्य बुलाने चले गए । वैद्य ने आकर जो सरला को देखा, तो सुदर बाब को एकांत में ले जाकर साफ़ ही कह दिया-"प्रबल मनोविघात हुआ है ! उसे किसी तरह रुलाइए, या कोई शारीरिक कष्ट पहुँचाहए, जिससे शोक प्रकट हो। नहीं तो प्राण-नाश की संभावना है।" दोनो सन्न रह गए | अभी जो एक घटना घटी है, उसे पूरे ४ मास भी नहीं बीते. फिर यह एक और अचानक वज्र. पात ! सुदर बाबू ने वैद्य का मुंह ताकते-ताकते कहा-"क्या किया जाय ? आप ही कुछ उपचार कीजिएगा। हमारे तो होश ठिकाने नहीं हैं।" कुछ सोचकर वैद्यजी फिर रोगी के पास आकर बैठ गए । उन्होंने रोगी का हाथ अपने हाथ लेकर कहा-"कैसी हो सरला!' सरला ने गिड़गिड़ाकर कहा-"जैसी हूँ, वैसी हूँ। मुझमें कुछ विकार नहीं है । मेरा मन भी पाप से अछूता है । ये मेरे इतने कृपालु माता-पिता-से ही हैं। इन्हें भी मुझ पर संदेह, घृणा ? ये मुझे घर से निकाल दंगे, तो मैं कहाँ जाऊँगी ? मेरा तो कोई नहीं है।" वैद्यजी समझ, शायद यह रो उठे । उन्होंने कहा--"तो क्या में 3