१४८ हृदय की परख शारदा उसका मुंह सूखा देख दौड़कर पानी ले आई। सरला ने झपटकर गिलास छीन लिया, और गटागट पी गई। शारदा ने उसके सिर पर हाथ फेरकर कहा- "सरला, तेरी यह क्या हालत है ?" सरला ने अधीरता से ऋद्ध होकर कहा-"तो इसे यहाँ रक्खा किसने था ? स्त्रियों के घरों में पुरुषों का काम क्या ?" इतना कहकर उसने विकटता से दाँत पीस डाले । शारदा समझ गई। सरला तो पागल हो गई, अब क्या करूं ? उसने दासी को बुलाकर कहा-"बाबूजी को बुलामो तो, सरला का जी अच्छा नहीं है।" थोड़ी देर में श्यामसुदर ने कमरे में प्रवेश करके कहा- "क्यों, क्या बात है ?" शारदा ने सरला की ओर संकेत करके कहा-"देखो तो, सरला तो अब सरला नहीं रही।" श्यामसुदर बाबू ने पास आकर सरला से कहा-"क्यों सरला, हुआ क्या है ?" सरला ने कहा-"कुछ हो, तो बताऊँ बाबूजी! मा का सिर फिर गया है। वह इस तरह आँख फाड़-फाड़कर देखती हैं, जैसे पहचानतो ही नहीं।" इसके बाद बाबू का हाथ पकड़कर सरला ने कहा-"तुम देखो न ! क्या मैं कोई गैर हूँ ?" यह कहकर वह आँखें फाड़कर सुदर बाबू को देखने लगी । सुदर बाबू सहमकर पीछे हट गए। उन्होंने शारदा से कहा-"हुआ
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