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.?? हृदय की परख - बूढ़ ने दिए के धुधले प्रकाश में सवार का मुख ध्यान से देखा । देखकर वह दंग रह गया । वैसा सुदर मुख राजाश्रा का भी कम देखा जाता है। उसके सतेज नेत्रों को देखकर ऐसा बोध होता था, मानो दुनिया भर की बुद्धि उसमें भरी है। बूढ़े ने सोचा, यह पुरुष साधारण नहीं है । फिर उसने कहा- 'महाशय ! इसे अपना ही झोपड़ा समझिए, उतर आइए. विश्राम करके प्रातःकाल उठ जाइएगा।" सवार ने गंभीरता से कहा-"मैं इस समय ठहर नहीं सकता। यदि आप सवेरे तक बजे को रख सकें, तो बड़ा उपकार हो । सबेरे आकर इसे ले जाऊँगा।" बूढ़ा राजी हो गया। बच्चे को वहीं छोड़कर सवार उसी आँधी-पानो में ग़ायब हो गया । थोड़ी देर में घोड़े की टाप का सुनाई देना भी बंद हो गया।