पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/१६४

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२६२ हृदय की परख आँखें कोयों में फंस गई हैं, डाढ़ी के बाल बढ़कर उलझ गए हैं, सिर के बाल धूल से भर रहे हैं, और कपड़े फटे और मैले हो रहे हैं । पैरों में जूता नहीं है। बड़े यत्न से वह अपने हाथ में के छोटे-छोटे चित्रों को एक-एक पैसे में बेच रहा है। इतनी भीड़ खड़ी है, पर कोई उससे खरीदता नहीं । चित्र अच्छे हैं, और बात-बात पर वह शपथ देकर कहता है कि चित्र अच्छे हैं, ले लो पर कोई नहीं लेता। जिस श्रेणी के लोग खरीदते थे, वे पैसे के मुताबिले चित्र को कुछ आदर! नहीं दे सकते थे। सुंदरलाल ने आगे बढ़कर कहा-"देखें, कैसे चित्र हैं।" उसने नम्रता से कहा-"देखिए न । एक पैसे में लूट नहीं रहा हूँ !" इतना कहकर ज्यों ही उसने चित्र देते-देते सुदर बाबू के मुख को देखा कि वह एकदम चीख मारकर उछल पड़ा। मुदर ने भी जो ध्यान से देखा, तो वह भी पागल की तरह चिल्ला उठे हेंहें-भूदेव ! तुम कहाँ ? सुदर बाबू ने लपककर उन्हें छाती से लगा लिया। समस्त उपस्थित पुरुषों में कौतूहल फेल गया। कुछ देर तक दोनो स्तब्ध रहे। फिर चिरदुखी सुदर- लाल न रोते-रोते कहा-"भाई ! तुम्हारी यह दशा ! हाय ! तुम्हारी यह दशा !" भूदेव ने एक ठंडी साँस खींचकर कहा-"इतने दुखी क्यों होते हो सुदरलाल ! तुम चाहते, तो मैं-" उसके होठ