पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/१६५

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कहा-"अंत में बीसवाँ परिच्छेद १६३ फड़ककर रह गए, फिर उसने एक ठंडो सौस खींचकर तुम मिल हो गए।" सुंदरलाल ने अत्यंत दुखी होकर कहा-"तुम ऐसे निष्ठुर हो गए भूदेव ! तुम्हें किसी पर दया नहीं आई ?' भूदेव ने कहा-"जिसे अपने ऊपर दया नहीं आती, उसे किसी पर क्यों दया आवेगी ? पर अब मलामत मत दो, बहुत कुछ फल भोग लिया है। चलो, स्थान चलो।" "कैसा स्थान ?" "मेरा घर, मैं यहाँ तीन वर्ष से हूँ।" सुदरलाल ने कहा - "उस घर में आग लगा दो, तुम्हें मेरे साथ चलना होगा। अभी चलो।" 'तुम्हारे साथ क्या चलूँगा! जैसे इतने दिन भूले रहे हो, वैसे ही अब भी इस कुमार्गी को मरने दो। शायद तुम नहीं जानते कि मैंने अन्य स्त्री से संबंध स्थापित कर जिया था, और उससे संतान भी हुई थी। मैं तुम्हारे घर जाने के योग्य नहीं हूँ। होता, तो अब तक कब का आ जाता।" सुंदरलाल ने कहा-"वह सब मालूम है, पर उन सब जाओ।" भूदेव ने चौंककर कहा -"क्या मालूम है ? सब मालूम है ? सरला और शशि दोनो कहाँ हैं ? अब उनकी क्या दशा है ?" "वे दोनो अब इस संसार में नहीं हैं।" यह कहकर सुंदरलाल ने संक्षेप में सारी कथा कह सुनाई । फिर बोले- बातों को भूल