पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/१७०

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(२) लिखा गया है । कन्नौज के राजा जयचंद ने जब संयागिता का स्वयंवर किया था, तब सभी राजों को आमंत्रित किया गया था। पारस्परिक वैमनस्य के कारण पृथ्वीराज को नहीं बुलाया था । और, उसका अपमान करके सोने की एक मूर्ति बनाकर, खवास के रूप में, द्वार पर रख दी थी। जब यह बात पृथ्वीराज को मालूम हुई, तो वह अपने थोड़े-से चुने हुए सामंतों को लेकर कन्नौज में भेष बदलकर श्रा गया, और स्वयंवर के वक्त संयोगिता को उठा, घोड़े पर बैठाकर, दिल्ली ले आया । संयोगिता भी पृथ्वीराज के गुणों पर मुग्ध थी। दोनो का विवाह हो गया । इसी कथानक के आधार पर बड़ी सुंदर भाषा में, यह उपन्यास लिखा गया है । एक रंगीन चित्र भी । मूल्य १), सजिल्द ) अन्नत ८ अमर कहानियाँ । लेखक, हिंदी-संसार के श्रेष्ठ कहानी-लेखक और उपन्यासकार प्राचार्य चतुरसेनजी शास्त्री । क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि निर्जीव कलम रसीली, जीवित सुंदरी की भाँति किस प्रकार हँसती, रोती और ठुमक ठुमककर नृत्य करती है, और मन किस प्रकार उस पर मोह-मग्न होकर, उन्मत्त मोर की भाँति नाचने लगता है ! कभी अातंक आपकी छाती में चूसा मारकर कहेगा - कहो. क्या देखा ? कभी प्रेम गुदगुदाकर आपके सोते हुए मन को जगाकर कहेगा-उठ-उठ श्रो यौवन के मतवाले ! कभी आप अपने भीतर से रोने की-कभी हँसने की-ध्वनि सुनकर चौंक उठेगे । श्राप आपे से बाहर हो जायँगे | ६.७ रंगीन और सादे चित्र । मूल्य १), सजिल्द १|| मिलने का पता- गंगा-ग्रंथागार ३०, अमीनाबाद-पार्क, लखनऊ Bharat Bhushan Dhar Box Hins 1970