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पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/२६

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R8 हृदय की परख . नहीं भूला हूँ। वैसा तेज और सौंदर्य कहीं नहीं देखा । जरूर वही तेरा पिता था । समय अच्छा न था ; वह अधिक ठहरा भी नहीं, दिए के धुंधले प्रकाश में उसे जितना देख पाया, उससे निश्च य कोई राजकुमार मालूम होता था । वह सवेरे फिर आने की बात कह गया था ; पर बेटी, आज १६ वष बीत गए, वह आज तक नहीं आया। पर आज भी वह दिन मेरे नेत्रों के आगे नाच रहा है।" इतना कहकर बूढ़ा हाँफने लगा। उसने सरला से कहा- "थोड़ा दूध दे।" सरला ने चम्मच से थोड़ा सा दूध उसके मुंह में डाल दिया । कछ दम ले कर बूढ़े ने फिर कहना शुरू किया-- "वह आज तक न पाया। अब आने की आशा भी नहीं है। सात-आठ बरस तक तेरे लिये कुछ रुपए समय-समय पर आते रहे ; पर फिर बंद हो गए । अब उसका कुछ पता नहीं। आज मैं यदि तुझे उसके हाथों में सौंपकर मर सकता, तो बड़े ही सुख की बात होती, पर- बुढ़े की बात काटकर सरला ने कछ उत्तेजित होकर तीव्र स्वर से कहा-"तो तुमने इतने दिनों तक मुझे धोखे में क्यों रक्खा ? तभी क्यों न सब कल कह दिया ?" बूढ़ ने सरला की ओर करुणा से ताकते हुए कहा-"मेरी सरला! उत्तेजित मन हो । उससे क्या लाभ होता । बेटो, उसे मैंने देश भर में बहुत ग्वोजा; पर वह कहीं भी न मिला। और, यदि इस बूढ़े पे भून भो हुई है, तो उसे मरती बार मला- "