२३ तीसरा परिच्छेद बूढ़े ने सरला का हाथ पकड़कर कहा-"अब अच्छा क्या होऊँगा! आओ, मेरी एक बात सुन लो, बड़े भेद की बात है।" सरला का जी धुकर-पुकर करने लगा। उसने कहा-"पर बाबा, ऐसी बात मत कहना, जो कुछ बुरी हो।" बूढ़े ने थके हुए स्वर से कहा-'सरला. तू मेरी बेटी नहीं है।" सरला के शरीर में खून को गति एक क्षण के लिये रुक गई। उसने तुरंत ही बढ़े के मुख को अपने हाथों से ढककर कहा-"चुप रहो, चुप रहो, ऐसी बात मत कहो बाबा ! ऐसो बात पर किसका विश्वास होगा ?" सरला दोनो हाथों से मुंह ढककर फूट-फूटकर रोने लगी। उसका हृदय तड़फने लगा। १८ वर्ष से जिसे बाप जाना और माना, आज मरती बार वही गैर बन रहा है । सरला ने अत्यंत करुणा-पूर्ण स्वर से कहा-"अब भी कह दो बाबा कि तुमने जो कुछ कहा था झूठ था ; तुम बहकाते थे । बोलो, क्या यही बात नहीं है ?" बूड़े का श्वास चढ़ रहा था । उसने सरला को तसल्ली देकर धीरे धारे कहा-"सग्ला, बेटी ! मेरी दुलारी बेटी ! बहुत बहकाया-जन्म से अब तक बहकाया है, अब क्या अंत समय में भी बकाऊँ ? बहुत दिन हुए । १६ वर्ष बीत गए । एक दिन बड़ी भारी आँधी और पानी आया था। कड़ाके की ठंडी हवा चल रही थी, तब एक युवा तुझे लाया था। बेटी, वही तेरा बाप होगा। मैं उस मुख को अभी तक
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