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हृदय की परख

युवक का चेहरा खिल उठा। उसने अधीर होकर कहा -"तो तुम उसी की निंदा क्यों करती हो ?" "तुम समझे नहीं। चाहना में वासना बुरी है । उसमें स्वार्थपरता बुरी है। हमें उसी का उन्मूलन करना चाहिए।"

"क्या कहती हो, समझा नहीं।"

"अच्छा देखा, स्वच्छ सरोवर के बीचोबीच एक प्रफुल्ल कमल खिल रहा है। चारो ओर मोती-सा जल हिलोरें ले रहा है। उन लहरों में सुनहरा सूरज चमक रहा है। बीच में हरे-हरे पत्तों के झुरमुट में कमल खिल रहा है । झंझा वायु से उसकी पंखड़ियाँ हिल रही हैं । भौंरा उन्मत्त हो गुनगुनाता चारो ओर नाचता फिर रहा है । देखो, यह कैसा सौंदर्य है,जो इसे न चाहे, वह मनुष्य नहीं, पत्थर है। उसके हृदय ही नहीं है।"

सरला ने इतना कहते-कहते देखा, युवक का मुॅंह उत्साह से दमक रहा है। उसने फिर कहना शुरू किया- "जो इसे न चाहे, वह निस्संदेह पत्थर है; पर वह पत्थर से भी कठोर है, जिसने चाहना में स्वार्थ और आत्मलिप्सा का संयोग कर लिया है, जिसने उसकी शोभा की, सौंदर्य की कुछ भी परवा न करके उसे वहाँ से तोड़कर अपने विलास में रख लिया है । देखो, सरोवर फीका पड़ गया-भौंरा व्याकुल होकर उड़ गया । कमल की नाल मुरझा गई, पत्ते सड़ गए,और अब वह पुष्प भी अकाल ही में मुरझा गया। अब वह