सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

पाँचवाँ परिच्छेद

इस दिन के बाद सरला और सत्य में अजीब परिवर्तन हो गया । सरला आठो पहर सत्य के साथ रहती, पर वह । सरला के लिये सदा व्याकुल रहता था। उसका हृदय कुछ और ही चाहता था। वह जानता था कि वह जो कुछ चाहता है, वह उपयुक्त नहीं है, पर उससे रहा नहीं जाता था । वह चाहे जितना व्याकुल होता, छटपटाता, तरसता, पर सरला के सामने एक शब्द भी नहीं कहता था । जब सरला कहीं दूसरी ओर देखती, तो सत्य एकटक उसकी मधुरिमामयी मूर्ति देखा करता; पर ज्यों ही वह उसकी तरफ़ देखती, उससे देखा ही नहीं जाता-उसकी आँखें सब ओर से थककर धरती पर आ टिकती थीं । सरला सब कुछ जानती थी। वह सत्य की आँखों में एक ऐसी प्यास देखती थी कि उसे देखकर सरला का हृदय पसीज उठता था । यद्यपि उसका उपाय उसके पास था, वह उसे अपना प्रणय-दान देकर सुखी कर सकती थी, पर उस ओर उसकी प्रवृत्ति ही नहीं थी। उसके मन में कभी ऐसा आया भी नहीं कि हमारा उससे व्याह होना संभव भी है। उसने प्रणय के स्थान में अपनी कृग, दया, सहानुभूति और अनुग्रह का द्वार खोल