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पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/४८

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हृदय की परख

था। 'उस युवा का स्वत्व है,'यह बात उसके कान में पहुँचते ही वह एक ही छलाँग में वहाँ आ खड़ा हुआ, और

सरला से बोला -"सरला, ये देवी कौन हैं ?"

सरला ने कहा-"यह एक बड़े घर की रमणो हैं ।"

रमणी ने कहा-"मैं सरला को माॅं हूँ। इसे अपने घर ले जाने को ओई हूँ।"

सत्य निर्निमेष दृष्टि से सरला को निहारने लगा।

सरला ने कहा-"मेरी सच्ची माँ तो यह धरती है । मुझे इसकी गोद में जो सुख है, वह तुम्हारे महलों में न मिलेगा। अच्छा, आओ, मेरा आतिथ्य स्वीकार करो, जो रूखा-सूखा है, भोजन करो, और विश्राम करो।"

प्रौढा ने उदासीनता से कहा-“मेरी बेटी होकर तू गैरों की-सी बातें करती है । इसे देखकर बड़ा दुःख होता है। तू-"

बीच में ही बात काटकर सरला बोली-"देवी, सचमुच मैं तुम्हारी बेटी नहीं हूँ । इस बात को भूल जाओ।"

"तो क्या तू मेरे साथ न चलेगी ?"

"कहाँ ?"

"मेरे घर ।"

"यह भी तुम्हारा ही घर है।"

"यह झोपड़ी मेरा घर नहीं है. वह महल है।"

"वह तुम्हारे पति का घर है ?"