पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७
पाँचवाँ परिच्छेद

"हाँ|"

"नहीं चलूंगी।"

"क्यों "

"क्यों क्या ? उसमें मेरा क्या है ? मैं जहाँ प्रसन्न हूँ वहीं रहने दो । कुछ मेरे जाने से तुम्हारा सुख तो बढ़ ही न जायगा ? मैं तुम्हारी वैसी आवश्यक सामग्रो होती, तो १६ वर्ष से याद न आती ? मेरे बाप के साथ मुझे भी भुला दो।"

"नहीं।"

"तुझे मेरी ममता कुछ नहीं है ?"

सरला ने स्थिर होकर कहा-"नहीं।"

अब रमणी क्षण-भर भी न ठहरी । वह उस अपमान को लेकर उलटे पैरों चल दी । सत्य और सरला दोनो ने उसे कुछ जल-पान करने को कहा; पर उसने न एक शब्द कहा, और न उनकी बिनती ही सुनी ।