पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६७
नवाँ परिच्छेद

भद्र पुरुष उठने लगे, बोले―"अच्छा, अब चलो; यह नियमित समय पर आकर आपको अभ्यास करावेंगे। इनसे विशेष संकोच करने की आवश्यकता नहीं है। यह हमारे तथा बाबू सुंदरलाल के अपने ही हैं।"

यह कहकर वह उठ खड़े हुए। युवक भी उठ खड़ा हुआ। सरला ने कहा―"ठहरिए, कुछ जल-पान तो करते जाइए।" पर वह धन्यवाद देकर, और इलाइची लेकर चल खड़े हुए। चलती बार सरला ने युवक पर एक नज़र डाल ली!