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हृदय की परख

"उनके तो सुनते हैं, काई संतान नहीं थी।" युवक फिर कुछ याद करके बोला―"कुछ याद आता है। एक कन्या उनकी तो नहीं थी, कोई अपरिचित उन्हें दे गया था।" युवक फिर चुप होकर कुछ चिंता-सी करने लगा। आँखें मुँद-सी गईं। सरला ने देखा युवक को एक ऐसी स्मृति हो रही है, जो बहुत हो मधुर है। सरला को भी इस समय एक पुरानी बात की धुँधली-सी याद आ रही थी, और उसके हृदय में एक विचित्र आंदोलन हो रहा था। युवक ने फिर कहा―"एक घटना के कारण वह लड़की भूली नहीं है। एक दिन मैं वहीं बैठा वित्र बना रहा था। सामने जो कृष्ण-ताल है, उसमें एक फूल तोड़ने के लिये वह घुस गई, पर कीचड़ में पैर फिसल जाने से धम-से गिर गई। गिरते ही रोने लगी। रोने की आवाज़ सुनकर मैं दौड़ा हुआ गया, और उसे निकालकर उसके घर पहुँचा आया। इसके बाद मैं कलकत्ते चला आया। इतने दिन बीत जाने पर भी वह बात आज की तरह याद है। न-जाने वह लड़की अब कहाँ होगी। अभी मैं कलकत्ते से लौटकर वहाँ गया था। बहुत कुछ आशा थी कि उसे वहाँ देखूँगा। पर सुना कि लोकनाथ काका मर गए, ओर उनके बाद ही वह लड़की भी कहीं चली गई।" इतना कहकर युवक ने एक लंबी साँस ले ली। सरला बहुत ही उद्विग्न हो रही थी। उससे चुप न रहा गया। उसने कहा―"मैं ही वह लड़की हूँ।"