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हृदय की परख

"हाँ-हाँ, आपने उनका कई बार ज़िक्र किया है।"

"आज उनके ही घर चलेंगे। उनकी लड़की का ब्याह है। बड़े आग्रह से बुलाया है।"

"अच्छी बात है। उन्हें देखने की लालसा भी है। आप कहती थीं कि वह आप पर अकपट प्रेम रखती हैं।"

"इसमें संदेह नहीं। वह बहुत बड़ी आदमी हैं। अब उनका जी अच्छा नहीं रहता। यहीं पड़ोस की लड़की हैं। इस बीच में वह एक बार भी यहाँ नहीं आईं, पर ख़बर नित्य आती रहती है। उनके पति भाई के सहपाठी मित्र हैं।" इतना कहते-कहते न-जाने क्यों शारदा का मुख भारी हो आया।

"तो कब चलना होगा?"

"तीन बजे की गाड़ी से।"

"अच्छी बात है।"

तैयारी हो गई। गाड़ी आई, और बाबू सुँदरलाल, उनकी बहन तथा सरला, तीनो उसमें सवार हो गईं। दो घंटे बाद सबको उतरना पड़ा। गाँव का छोटा-सा स्टेशन था, पर मालिक की ओर से वहाँ पर भी सवारी का प्रबंध था। सब बैठकर चले। एक आलीशान मकान के सामने गाड़ी ठहर गई। सब लोग आगे बढ़े, और द्वार पार करके ज़नानी ड्योढ़ी पर पहुँचे। आगे शारदा थी, पीछे सरला। सामने ही गृह-स्वामिनी इनका स्वागत करने को