पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१३

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अिस ग्रंथ क तामिल संस्करण

प्रसिद्ध किया, जिस का प्रथम भाग वोलकॅनो [ज्वालामुखी] नामसे प्रकाशित हुआ था। इस ग्रंथ का पूरा उपयोग नेताजी ने किया था, यहाँ तक, कि 'चलो दिल्ली' अमर नारा भी सावरकरजी की इसी ग्रंथ के प्रथम ख्ण्ड से लिया गया।

१९३७ मे जब पह्ली बार राष्ट्रीय महासभा के चुने प्रतिनिधियों का मंत्रिमंडल प्रांत प्रात में स्थापित हुआ, तब जब्त साहित्य को मुक्त करवाने के लिए जनता ने बंडा आदोलन किया; किन्तु अन्य पुस्त्कों से मनाही हटाने पर भी 'सावरकरजी के इस महन् ग्रंथ जब्ती ह्टाने क साहस ये कत्रिसी स्वात्तत्र्योपासक न कर पाये!'

किन्तु दूसरी बार १९४६ में प्रातिक शासनसूत्र कॉग्रेसियोंने सम्हाला तब बम्बाई के नौजवानोंने गुप्तरूपसे अग्रेज़ी संस्करण का पुनर्मुद्रण किया और मंत्रिमंडल को चेतावनी दी, कि' जेल जाने की जोखम उठाकर भी, हम यह क्रंति-गीत बेचने जा रहे है।' किन्तु इधर मंत्रिमण्डल समग्र सावरकर साहित्य की जब्ती रद कर देने की घोषणा की और इस तरह ३८ वर्षों का अन्याय दूर हो गया। सारा भारत बम्बई मंत्रिमण्डल को धन्यावाद देगा।

अब इसका अंग्रेज़ी सुंदर संस्करण प्रसिद्ध हो चुका है तथा मराठी 'आवृत्ति' भी निकल गयी है।

इस प्रकर भारतीय स्वधीनता के लिए 'अभिनव भारत' ने सशस्त्र क्रिंति का संगठन शुरू किया तब से, नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिंद सेना के साथ चढाई तक, सब को प्रेरणा देनेवाला यह अनमोल ग्रंथ क्रिंति-कारियो क ग्रन्थसाह्ब बन गया था और आगामी क्रांतिकारियों का दीपस्तम्म बन रहेगा। ब्रिटिश साम्राज्य की समस्त शक्ति, कंस की तरह, इस ग्रंथ के श्रीक्रिष्ण को मिटाने में असमर्थ रही; क्योंकि, गोकुलवासी जनों के समान देशभक्त क्रांन्तिकरियों ने उसे प्रणों के आंचल में छिपा कर उसकी रक्षा की। कहते हैं इतिहास की पुनरावृत्ति होती है, गोकुल से यह नंदकिशोर अब प्रकट रूप से वासुदेव बना है! सभी छल-कपट तथा दुष्ट हमलों से बचकर यह कृष्णचंद्र