पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१३१

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अध्याय ७ वा] [गुप्त सगठन " तप और शान्तिही जिनका धन है; उनमे जला देनेवाला अमितेन भी गुप्तरूपसे भरा हुआ है. व्यान रहे एकबार यह अमि छिट जाय तो सारे विश्व को भस्म कर देनेकी सामर्थ्य उसमें होती है।" ___ ओ दुनियावाले सुनो ! सहिष्णुता भारत का महान् गुण हैं अवश्य, किन्तु भारतके इस स्वभावसिद्ध गुणसे अमर्याद लाभ उठाने का दुष्ट पडयत्र यदि कोई रचेगा तो, व्यान रहे, जिस हिंदुस्थानके अतःकरण में सबके साथ सहिष्णतासे पेश आनेवाली अपरपार क्षमाशीलता भरी है उसी हिदस्थानके हृदयवेदीमे प्रतिशोधसे प्रज्वलित होनेवाली प्रलयंकर अमि भी सुरक्षित है। महादेव का तीसरा नेत्र जानते है न १ जन तक वह आँख बद हो तबतक शिवजी बरफ.-से ठटे और शात ! किन्तु वह तीसरी आँख खुली नहीं और समूचे ब्रह्माड को उस की प्रलयकर बालाओने भस्म किया नहीं ! ज्वालामुखी की कल्पना कर सकते हो ? ऊपरसे तो उसका मुँह हरी घासके पर्शसे ढका हुआ होता है। जब उसका मुंह फट जाय तो उससे खोलता हुआ तप्तरस उगलने लगता है ! ठीक उसी तरह शिवजी के तृतीय नेत्र से मी अधिक प्रलयकर हिंदुस्थान का जागरित ज्यालामुखी अब भडकन लगा है। तप्तरसके डरावने सोते अब उस के उदर मे खौलने लगे है। स्फोटक रसायन का भी मिश्रण घोंटा जा रहा है और स्वातत्यप्रेमका स्फुल्लिग उसपर गिर रहा है । अत्याचारी शासन ! अबतक अवसर हाथसे नहीं गया. अभी सोच लो। इसमे जरा भी टालमटूल किया तो उद्धत और 'पीडक शासन को ज्वालामुखीके समान धधकते प्रतिशोध का परिचय प्रस्फोट की प्रचडता से ही होगा: इसमें सदेह नहीं । खण्ड प्रथम समाप्त • Srint